Saturday, November 8, 2008

द्वंद

पड़ा रहा वो नौ माह तक माँ के कोख में ||
माँ बेचारी, हर पल जीती उसके ही दुलार में ||
हर पल पुचकारती,रखती उसको अपने ही आँचल में ||
बड़ा हुआ बेचारा और आई तरुनाई ॥
मिला उसे प्यार ,लगा कि दुनिया पायी ||
अब फंसा बेचारा द्वंद में,कि थामे माँ का आंचल ||
या कि देखे प्यार जिसने हसीं दुनिया दिखाई ||
टूटते हैं क्यो रिश्ते ,नए रिश्ते बनाने में ??
नई दुनिया बनाने में क्यो छुटती है दुनिया??
क्यो नही रहती दुनिया दोनों एक संग??
क्यो?? क्यो नही रहती दुनिया दोनों एक संग??

© आशुतोष त्रिपाठी

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