Saturday, November 22, 2008

विवशता....

किया समर्पण सबकुछ उस देवता को...
करू क्या अर्पण उसको अब???
करता धारण मृत्युशैया , अगर होता वश में...
हूँ मजबूर मगर , जिंदगी उसे देने का वादा है.....
© आशुतोष त्रिपाठी

Thursday, November 20, 2008

समाज

अब तो लोग मन्दिर मस्जिद जाने से कतराने लगे हैं......
एक दूसरे से अब तो नाम भी छुपाने लगे हैं....
वो बोले की "वो " मुसलमा हैं बात कर....
वो बोले की "हम" हिंदू हैं तकरार कर...
क्यो रोपे हम एक दूजे के दिलो में कांटे....
क्यो करे ऐसी बात जो दिलो को बाटे.......
लोग , मतवाले एक दूजे पे बम गोलिया फ़ेंक रहे हैं...
नेता ,बेचारे राजनीति की रोटिया सेंक रहे हैं.....
हर तरफ़ अराजकता उभर के आई है....
अब ना कोई माँ बाप ना कोई भाई है....
शिक्षक अपनी मर्यादा खो रहा है.......
ब्यभिचार के आरोप में सजा भुगत रहा है....
कैसी बेहयाई है की बाप ने बेटी की इज्ज़त पे ही नज़र लगाई है.....
तो कही-कही बेटी ने माँ बाप की गर्दन उडाई है...
जो बेटा अभी तक आँखों का तारा रहा...
बुढापे में लाठी का सहारा ना रहा...
अब दादी-नानी भरत , लव-कुश की कहानी नही सुनाती....
अब तो पैदा होते ही माँ भी बच्चे को रिमोट पकडाती...
© आशुतोष त्रिपाठी

Monday, November 17, 2008

माटी का पुतला....

माटी के पुतले से कौन प्यार करता है??
कौन है जो तेरा इंतज़ार करता है??
चला गया भी तो यहाँ कुछ कमी न होगी...
मर गया भी तो किसी की आँख नम न होगी...
चलेगी तब भी हवा रोज , बात मगर वो न होगी॥
जलेंगे तब भी दीप रोज, वो रौशनी न होगी...
जियेंगे वो भी हर लम्हा , वो जिंदगी न होगी...
जियेंगे वो भी हर लम्हा , वो जिंदगी न होगी..........

© आशुतोष त्रिपाठी

Saturday, November 8, 2008

द्वंद

पड़ा रहा वो नौ माह तक माँ के कोख में ||
माँ बेचारी, हर पल जीती उसके ही दुलार में ||
हर पल पुचकारती,रखती उसको अपने ही आँचल में ||
बड़ा हुआ बेचारा और आई तरुनाई ॥
मिला उसे प्यार ,लगा कि दुनिया पायी ||
अब फंसा बेचारा द्वंद में,कि थामे माँ का आंचल ||
या कि देखे प्यार जिसने हसीं दुनिया दिखाई ||
टूटते हैं क्यो रिश्ते ,नए रिश्ते बनाने में ??
नई दुनिया बनाने में क्यो छुटती है दुनिया??
क्यो नही रहती दुनिया दोनों एक संग??
क्यो?? क्यो नही रहती दुनिया दोनों एक संग??

© आशुतोष त्रिपाठी

दुनिया


बड़ी नाजनीन है मोहब्बत की दुनिया...
कभी हँसाए, कभी रुलाये,कभी तडपाये तो कभी सताए...
जो पाए मोहब्बत, देखे ख़ुशी औ हसीं दुनिया.... जो खोये उसके हक़ आये आंसू ,रुसवाई औ गमगीन दुनिया... जो पाना है मोहब्बत तो थामो जम के वो हाथ..
बनाओ उसे अपना की रहे मरने तक साथ...


© आशुतोष त्रिपाठी

Wednesday, November 5, 2008

बेनकाब का पर्दा


किये हैं हमसे पर्दा मगर ज़माने से रूबरू हैं..
सुनाये हाल-ऐ-दिल उन्हें हम यही आरजू है..

© आशुतोष त्रिपाठी

Tuesday, November 4, 2008

हालात्

लगा था सब कुछ आंसान होगा ||
चंद दिनों में अपना भी एक जहां होगा ||
अब उतरे जो मैदाने ज़ंग में ||
तो रूबरू हुए की हालात् तंग है ||

एक आवाज

थक गया हूँ इस रंज और गम की दुनिया से..
इन धमाको से ,दर्द से चीखते लोगो से...
कभी तो नहीं होगा बम धमाका ...
कभी तो हँसेगी पूरी दुनिया संग ...
हर वक्त कही खून की होली है..
तो है कही धमाको की दिवाली ...
देखता है हर शख्स दुसरे को शक की निगाह से...
नाम,सक्शियत नहीं धर्म की पहचान हो गयी है...
नहीं रही ये दुनिया आशियाना ,अब तो कब्रगाह बन गयी है....
© आशुतोष त्रिपाठी

जागो




देखो-देखो हुआ है एक और धमाका...||
लगेगा एक बार फिर तमाशा...||
लोग आयेंगे ,देखेंगे,और घरो को लौट जायेंगे...||
फिर से व्यक्ति विशेष को कोशेंगे ,चीखेंगे चिल्लायेंगे...||
क्यों नहीं जगता इस देश का इंसान...||
क्यों नहीं आता फिर से एक तूफ़ान...||
क्यों है इंसान आज बहका हुआ...||
एक ,कही किसी को कोई मारता है...||
तो कही कोई रोता ,तड़पता, मरता है...||

© आशुतोष त्रिपाठी