कल भागता मिला, मेरा बचपन मेरे गलियारे में ।
मैंने पूछा कहाँ जा रहा?
वो ठिठका, हँसा और चुप बैठा माँ के आँचल में ।
पल्लू के कोने से वो देखता रहा और हँसता रहा ।
पूछा की कैसे हो? मैंने कहा की ठीक हूँ मगर अधूरा हूँ ।
एक थपकी हुई और आँख खुली,
देखा बेटा था, आ बैठा मेरे सामने ।
वही तो था वो, उसकी आँखों में, मुस्कुराता हुआ ।
बोला, मैं कही नहीं जाता, मैं हूँ यहीं ।
कभी तुममे, कभी तुम्हारे अंश में।
मैं हँसा और बोला, हाँ, अभी हूँ मैंने पूरा!!
अभी हूँ मैं पूरा ।।
© आशुतोष त्रिपाठी