Wednesday, April 22, 2020

भागता बचपन

कल भागता मिला, मेरा बचपन मेरे गलियारे में
मैंने पूछा कहाँ जा रहा? 
वो ठिठका, हँसा और चुप बैठा माँ के आँचल में
पल्लू के कोने से वो देखता रहा और हँसता रहा
पूछा की कैसे हो? मैंने कहा की ठीक हूँ मगर अधूरा हूँ
एक थपकी हुई और आँख खुली, 
देखा बेटा था, बैठा मेरे सामने
वही तो था वो, उसकी आँखों में, मुस्कुराता हुआ
बोला, मैं कही नहीं जाता, मैं हूँ यहीं
कभी तुममे, कभी तुम्हारे अंश में।
मैं हँसा और बोला, हाँ, अभी हूँ मैंने पूरा!!

अभी हूँ मैं पूरा ।।

© आशुतोष त्रिपाठी