Thursday, November 20, 2008

समाज

अब तो लोग मन्दिर मस्जिद जाने से कतराने लगे हैं......
एक दूसरे से अब तो नाम भी छुपाने लगे हैं....
वो बोले की "वो " मुसलमा हैं बात कर....
वो बोले की "हम" हिंदू हैं तकरार कर...
क्यो रोपे हम एक दूजे के दिलो में कांटे....
क्यो करे ऐसी बात जो दिलो को बाटे.......
लोग , मतवाले एक दूजे पे बम गोलिया फ़ेंक रहे हैं...
नेता ,बेचारे राजनीति की रोटिया सेंक रहे हैं.....
हर तरफ़ अराजकता उभर के आई है....
अब ना कोई माँ बाप ना कोई भाई है....
शिक्षक अपनी मर्यादा खो रहा है.......
ब्यभिचार के आरोप में सजा भुगत रहा है....
कैसी बेहयाई है की बाप ने बेटी की इज्ज़त पे ही नज़र लगाई है.....
तो कही-कही बेटी ने माँ बाप की गर्दन उडाई है...
जो बेटा अभी तक आँखों का तारा रहा...
बुढापे में लाठी का सहारा ना रहा...
अब दादी-नानी भरत , लव-कुश की कहानी नही सुनाती....
अब तो पैदा होते ही माँ भी बच्चे को रिमोट पकडाती...
© आशुतोष त्रिपाठी

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