Saturday, September 1, 2012

लो दिन बिता ,लो रात गई.....
सूरज ढलकर पश्चिम पंहुचा ...
डूबा , संध्या आई , छाई...
सौ संध्या सी वो संध्या थी...
क्यो उठते उठते सोचा था...
दिन में होगा कुछ बात नई |
लो दिन बिता .... लो रात गई...

© आशुतोष त्रिपाठी

शाम तेरे नाम !!


वो ्पुछते है हमसे, क़ि इतना ज़ामे-कश क्यो लगाते हो?
हमने कहा उनसे , यही वो वक्‍त है जब तुम याद नही आते हो !!
यू नही कि , हम तुम्हे याद नही करते!!
्लेकिन जब भी याद आते हो , बहुत आते हो !!
दिल के दरख्‍त से निकलते हँ जो आसू , उन्ही को इन पैमानो मे मिलने , हर शाम मैखाने चले आते है!!!

आज की शाम.... ज़ाम तेरे नाम..... ः)    

© आशुतोष त्रिपाठी